खाटू श्याम जी का गौरवशाली इतिहास: आस्था, संघर्ष और पुनर्निर्माण

खाटू श्याम जी का भव्य मंदिर आज लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह मंदिर मूल नहीं है, बल्कि औरंगज़ेब की मृत्यु के बाद पुनर्निर्मित किया गया था? यह तथ्य पंडित झाबरमल्ल शर्मा की किताब “खाटू श्यामजी का इतिहास” में विस्तार से बताया गया है। आइए, इस ऐतिहासिक सच्चाई को गहराई से समझते हैं।

महाभारत काल से खाटू श्याम जी की कथा

महाभारत काल में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया था कि कलियुग में वे “श्याम” नाम से पूजे जाएंगे। जब बर्बरीक ने अपना शीश श्रीकृष्ण को समर्पित किया, तो वह युद्ध के अंत तक साक्षी रूप में मौजूद रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को एक नदी में प्रवाहित कर दिया। हजारों वर्षों बाद, खाटू क्षेत्र में एक टीले के नीचे यह शीश प्राप्त हुआ, जिसे बाद में एक मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया।

जिस स्थान पर यह शीश प्राप्त हुआ, वह श्याम कुंड के नाम से प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि एक स्थानीय चरवाहे को स्वप्न में बाबा श्याम ने दर्शन दिए और बताया कि उसका शीश ज़मीन में दबा हुआ है। जब राजा को इसकी सूचना मिली, तो उन्होंने खुदाई करवाई और शीश प्राप्त कर एक भव्य मंदिर में स्थापित करवाया।

मंदिर पर औरंगज़ेब का आक्रमण और विध्वंस

मुगल शासक औरंगज़ेब ने अपनी धार्मिक नीति के तहत कई हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया। “खाटू श्यामजी का इतिहास” के अनुसार, खाटू में स्थित इस प्राचीन मंदिर को भी नष्ट कर वहां एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया।

यह मंदिर खाटू के मुख्य बाजार में स्थित था और इसके परिक्रमा पथ में एक शिवालय भी था, जो आज भी मौजूद है। औरंगज़ेब के आदेश पर मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया, लेकिन खाटू श्याम जी की भक्ति समाप्त नहीं हुई।

औरंगज़ेब के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण

औरंगज़ेब की मृत्यु (1707 ई.) के बाद, 1720 ईस्वी में जोधपुर के राजा अभय सिंह ने बाबा श्याम के मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य आरंभ किया। इस नए मंदिर में बाबा श्याम के शीश को पुनः प्रतिष्ठित किया गया। राजस्थान के विभिन्न शासकों ने इस मंदिर को भव्य स्वरूप देने में योगदान दिया। इसके बाद खाटू श्याम धाम धीरे-धीरे देशभर में प्रसिद्ध हो गया और लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गया।

मंदिर का आधुनिक स्वरूप और विशेषताएँ

वर्तमान मंदिर जोधपुर के शासक अभय सिंह द्वारा बनवाया गया दूसरा मंदिर है, जो आज भी लाखों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यह संगमरमर से निर्मित है और इसकी वास्तुकला राजस्थानी शैली की अद्भुत मिसाल है।

खाटू श्याम का संदेश: आस्था को कोई मिटा नहीं सकता

खाटू श्याम जी का इतिहास हमें यह सिखाता है कि भले ही शासकों ने मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की हो, लेकिन भक्तों की आस्था कभी नहीं डगमगाई। समय के साथ यह और भी मजबूत होती गई।

जय श्री श्याम!

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