“बाबा श्याम का पवित्र धाम: कैसे हुआ मंदिर का निर्माण और पुनर्निर्माण?”

“हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा!”—यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि करोड़ों भक्तों की अटूट श्रद्धा का प्रतीक है। बाबा खाटू श्याम का मंदिर केवल भारत में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। हर साल लाखों श्रद्धालु यहाँ माथा टेकने आते हैं और बाबा से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबा खाटू श्याम मंदिर का निर्माण किस राजा ने करवाया था और वे किस वंश से थे? इस लेख में हम इस ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर के निर्माण की पूरी कथा को विस्तार से जानेंगे।

बर्बरीक से बाबा श्याम तक: एक दिव्य गाथा

महाभारत काल के महान योद्धा बर्बरीक ही बाबा खाटू श्याम के रूप में पूजे जाते हैं। वे पांडव पुत्र भीम के पौत्र और घटोत्कच के पुत्र थे। बर्बरीक को तीन दिव्य बाण प्राप्त थे, जिनमें इतनी शक्ति थी कि वे पूरे ब्रह्मांड का नाश कर सकते थे।

जब महाभारत का युद्ध हुआ, तो बर्बरीक भी अपनी वीरता दिखाने के लिए कुरुक्षेत्र पहुंचे। उन्होंने अपनी माता को वचन दिया था कि वे हमेशा हारे हुए पक्ष का साथ देंगे। लेकिन भगवान श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि बर्बरीक युद्ध में उतरे, तो युद्ध का संतुलन बिगड़ जाएगा। इसलिए उन्होंने बर्बरीक से उनका शीश (सिर) दान में मांग लिया।

बर्बरीक ने सहर्ष शीश अर्पित कर दिया। श्रीकृष्ण ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में तुम “श्याम” नाम से पूजे जाओगे और जो भी सच्चे मन से तुम्हारी आराधना करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी।

खाटू में बाबा श्याम का शीश कैसे मिला?

युद्ध समाप्त होने के बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक के शीश को रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया। कई वर्षों बाद, यह शीश राजस्थान के सीकर जिले के खाटू गाँव में मिला। एक दिन खाटू के राजा रूपसिंह चौहान को स्वप्न आया, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण ने आदेश दिया कि गाँव के पीपल के वृक्ष के नीचे खुदाई करने पर एक दिव्य शीश मिलेगा, जिसे उचित विधि-विधान से स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवाया जाए।

सुबह जब राजा उठे, तो गाँव वालों ने बताया कि एक गाय अपने आप पीपल के पेड़ के पास दूध गिरा रही है। राजा ने तुरंत वहाँ खुदाई करवाई और बर्बरीक का दिव्य शीश प्राप्त हुआ। राजा रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने विधिपूर्वक पूजा कर शीश को प्रतिष्ठित किया और भव्य खाटू श्याम मंदिर का निर्माण कराया।

औरंगज़ेब के बाद मंदिर का पुनर्निर्माण

मुगल शासक औरंगज़ेब ने अपनी धार्मिक नीति के तहत कई हिंदू मंदिरों को ध्वस्त किया। खाटू श्याम मंदिर भी इसका शिकार बना और वहाँ एक मस्जिद का निर्माण करवाया गया। लेकिन बाबा श्याम की भक्ति समाप्त नहीं हुई।

औरंगज़ेब की मृत्यु (1707 ई.) के बाद, 1720 ईस्वी में जोधपुर के राजा अभय सिंह ने बाबा श्याम के मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य आरंभ किया। इस नए मंदिर में बाबा श्याम के शीश को पुनः प्रतिष्ठित किया गया। राजस्थान के विभिन्न शासकों ने इस मंदिर को भव्य स्वरूप देने में योगदान दिया। इसके बाद खाटू श्याम धाम धीरे-धीरे देशभर में प्रसिद्ध हो गया और लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बन गया

मंदिर का आधुनिक स्वरूप और विशेषताएँ

वर्तमान मंदिर, जिसे जोधपुर के शासक अभय सिंह ने बनवाया था, आज भी लाखों भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है। यह संगमरमर से निर्मित है और इसकी वास्तुकला राजस्थानी शैली की अद्भुत मिसाल है।

🔹 भव्य संगमरमर का मंदिर – अलौकिक नक्काशी और शिल्पकला का उत्कृष्ट नमूना।
🔹 श्याम कुंड – यही वह पवित्र स्थान है, जहाँ से बाबा श्याम का शीश प्राप्त हुआ था।
🔹 अखंड ज्योति – यह दिव्य ज्योति बाबा श्याम की कृपा और भक्तों की अटूट श्रद्धा का प्रतीक है।
🔹 विशाल मेला – फाल्गुन मास की एकादशी को यहाँ भव्य मेला आयोजित होता है, जिसमें लाखों भक्त बाबा के दर्शन करने आते हैं।

कैसे पहुँचे खाटू श्याम मंदिर?

🚆 निकटतम रेलवे स्टेशन: रींगस जंक्शन (17 किमी)
✈️ निकटतम हवाई अड्डा: जयपुर इंटरनेशनल एयरपोर्ट (80 किमी)
🛣 सड़क मार्ग: जयपुर, दिल्ली, अजमेर, सीकर आदि शहरों से बस और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।

“हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा!”

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