सूरजगढ़ से खाटू श्याम निशान यात्रा: इतिहास, महत्व और परंपरा

खाटू श्याम बाबा के मंदिर के शिखर पर हर साल एक विशेष ध्वज (निशान) चढ़ाया जाता है, जो राजस्थान के झुंझुनूं जिले के सूरजगढ़ से आता है। यह निशान फाल्गुन माह में खाटू लक्खी मेले के दौरान मंदिर के शिखर पर स्थापित किया जाता है। यह यात्रा सूरजगढ़ के श्याम मंदिर से शुरू होकर खाटू श्याम मंदिर तक पहुँचती है, जिसे सूरजगढ़ निशान यात्रा कहा जाता है।

यह यात्रा अपने अनोखेपन के लिए प्रसिद्ध है। इस यात्रा की खासियत यह है कि महिलाएँ अपने हाथों में निशान और सिर पर जलती हुई सिगड़ी लेकर पदयात्रा करती हैं। ऐसा माना जाता है कि जिन महिलाओं की बाबा श्याम से मांगी गई मनोकामना पूरी हो जाती है, वे इस अनोखे तरीके से अपनी श्रद्धा प्रकट करती हैं।

इस यात्रा के दौरान भक्तजन पूरे श्रद्धा भाव से पदयात्रा करते हैं और भजनों पर नाचते-गाते बाबा के दरबार में पहुँचते हैं। खाटू श्याम मंदिर में निशान चढ़ाने के बाद सभी भक्त पुनः सूरजगढ़ वापस पैदल लौटते हैं, जिससे इस यात्रा की पवित्र परंपरा पूरी होती है।

सूरजगढ़ निशान का ऐतिहासिक महत्व

राजस्थान के झुंझुनू जिले में स्थित सूरजगढ़ एक ऐतिहासिक नगर है, जहाँ के राजपरिवार और स्थानीय भक्तों की बाबा श्याम के प्रति विशेष श्रद्धा रही है। ऐसा कहा जाता है कि सूरजगढ़ के तत्कालीन शासकों और लोगों ने बाबा श्याम की अनन्य भक्ति की और यह प्रण लिया कि हर साल बाबा श्याम के मंदिर में विशेष ध्वज (निशान) अर्पित किया जाएगा।

यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है और हर साल सूरजगढ़ से विशेष रूप से श्याम निशान यात्रा निकाली जाती है, जिसमें हजारों भक्त शामिल होते हैं। यह यात्रा भव्य रूप से खाटूश्याम जी मंदिर तक पहुँचती है, और भक्तगण निशान को मंदिर के ऊपर चढ़ाते हैं। इस यात्रा का आयोजन बहुत ही श्रद्धा और भक्ति के साथ किया जाता है, जिसमें श्याम प्रेमियों की भावनाएँ जुड़ी होती हैं।

सूरजगढ़ से निशान यात्रा की शुरुआत कैसे हुई?

इस यात्रा की शुरुआत विक्रम संवत 1706 (सन् 1649 ई.) में खंडेला के सांठावास ग्राम निवासी तुलसाराम जी इंदौरिया ने की थी। बाद में उनके वंशज सेवाराम जी इंदौरिया सूरजगढ़ में बस गए और वहीं से निशान चढ़ाने की परंपरा निभाने लगे। आज भी उनके वंशज इस परंपरा को निभा रहे हैं।

ऐसा बताया जाता है कि अंग्रेजों के शासनकाल में खाटू श्याम मंदिर के दरवाजों को बंद कर ताले लगा दिए गए थे, जिससे भक्तजन दर्शन नहीं कर पा रहे थे। उसी समय सूरजगढ़ से आए भक्त मंगलाराम ने श्याम बाबा का नाम लेकर मोरछड़ी से मंदिर के ताले पर प्रहार किया और ताला चमत्कारिक रूप से खुल गया।

इस घटना के बाद से ही सूरजगढ़ के निशान की महिमा बढ़ गई और तब से हर साल खाटू मंदिर के शिखर पर सूरजगढ़ का निशान चढ़ाया जाता है।

निशान यात्रा का मार्ग

सूरजगढ़ से खाटू श्याम जी मंदिर तक यह यात्रा कुल 152 किलोमीटर की दूरी तय करती है और इसे पूरा करने में लगभग 90 घंटे लगते हैं।

  • सूरजगढ़ → सुलताना → भाटीवाड़ → गुढ़ागौड़जी → उदयपुरवाटी → गुरारा → बामनवास → मंढा → खाटू श्याम जी

कब होती है निशान यात्रा?

फाल्गुन सुदी एकम को सूरजगढ़ धाम में निशान की स्थापना होती है। इसके बाद छठे दिन, अर्थात् षष्ठी को, सुबह 11:15 बजे निशान यात्रा शुरू होती है। नवमी के दिन यह निशान खाटू श्याम मंदिर में पहुँचता है। अंततः, फाल्गुन शुक्ल द्वादशी को विधिवत पूजा-अर्चना के बाद निशान को मंदिर के शिखर पर चढ़ाया जाता है।

सूरजगढ़ के निशान की महिमा

  • सूरजगढ़ के निशान की ऊँचाई 11 फीट होती है।
  • ध्वज का रंग सफेद होता है, जिसके बीच में बाबा श्याम तीन बाण और नीले घोड़े पर विराजमान रहते हैं।
  • ऐसा माना जाता है कि इस निशान में स्वयं बाबा श्याम का वास होता है।
  • निशान की दर्शन अवधि केवल 12 दिन होती है, जो लक्खी मेले के दौरान होती है।
  • भक्तों का विश्वास है कि जो भी इस निशान के दर्शन कर लेता है, उस पर श्याम बाबा की विशेष कृपा होती है।

सूरजगढ़ निशान यात्रा का आध्यात्मिक महत्व

भक्तों का मानना है कि जो भी सूरजगढ़ निशान के दर्शन करता है, उस पर बाबा श्याम की विशेष कृपा होती है। इस यात्रा में शामिल होकर भक्तजन अपने कष्टों से मुक्ति पाते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि प्राप्त करते हैं। यह यात्रा सद्भावना, भक्ति और समर्पण का प्रतीक है, जो हर साल हजारों भक्तों को एक साथ जोड़ती है।

निष्कर्ष

सूरजगढ़ निशान यात्रा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था और विश्वास की पराकाष्ठा है। हर साल यह यात्रा बाबा श्याम के प्रति भक्तों की अटूट श्रद्धा को दर्शाती है और भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा से भर देती है। यदि आप भी इस पवित्र यात्रा में शामिल होना चाहते हैं, तो अगली फाल्गुन मास में बाबा श्याम के चरणों में अपनी भक्ति अर्पित करने का अवसर अवश्य लें।

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